राष्ट्रीय नवाचार प्रतियोगिता में जीता स्वर्ण पदक
अम्बिकापुर | अंबिकापुर के होली क्रॉस कॉन्वेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल के कक्षा 10 (F) के छात्र शौर्य सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया है। उन्होंने इंडियन यंग इन्वेंटर्स एंड इनोवेटर्स चैलेंज (IYIIC) में प्रथम स्थान हासिल कर स्वर्ण पदक जीता।
यह प्रतिष्ठित राष्ट्रीय विज्ञान एवं नवाचार प्रतियोगिता रायपुर के NH गोयल वर्ल्ड स्कूल में, राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (NCSTC), भारत सरकार के तत्वावधान में आयोजित की गई।
‘वेस्ट टू वंडर’: धान की भूसी से बना बायोप्लास्टिक
शौर्य का अभिनव प्रोजेक्ट वेस्ट टू वंडर ग्रामीण नवाचार का बेहतरीन उदाहरण है। इसमें उन्होंने धान की भूसी से बायोप्लास्टिक और बीज-संवर्धित कागज़ तैयार किया, जो प्लास्टिक प्रदूषण और फसल अवशेष जलाने जैसी गंभीर समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।
इसरो निदेशक ने की सराहना
कार्यक्रम का उद्घाटन डॉ. नीलेश देसाई, निदेशक, इसरो–स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (SAC) ने किया। उन्होंने शौर्य के प्रोजेक्ट को वैज्ञानिक सरलता, ग्रामीण प्रासंगिकता और पर्यावरणीय अनिवार्यता का उत्कृष्ट उदाहरण बताया।
मार्गदर्शक शिक्षिका ने कहा ‘वह रचनात्मकता और अनुशासन का संगम है’
शौर्य को यह सफलता उनकी शिक्षिका श्रीमती ज़िग्यासा सिंह के मार्गदर्शन में मिली। उन्होंने कहा, “शौर्य विज्ञान को जिम्मेदारी और सौंदर्य के साथ जोड़ता है। उसका विचार यह साबित करता है कि विज्ञान सुंदर भी हो सकता है और सार्थक भी।
प्रतिष्ठित पैनल से मिला स्वर्ण
शौर्य को स्वर्ण पदक प्रदान करने वाले विशिष्ट पैनल में शामिल थे
प्रो. राजीव प्रकाश, निदेशक, IIT भिलाई
डॉ. डी.वाई. पाटिल, पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ, ISRO
डॉ. गौरव कुमार सिंह (IAS), रायपुर
CBSE क्षेत्रीय निदेशक
बिहार जिला समन्वयक (विज्ञान एवं नवाचार प्रकोष्ठ)
स्थायित्व को आदत बनाना ही मेरा लक्ष्य शौर्य सिंह
शौर्य ने कहा मैं इस परियोजना को ग्रामीण स्तर पर व्यावहारिक इकाइयों में विस्तारित करना चाहता हूँ और इसकी टिकाऊ क्षमता बढ़ाने पर शोध जारी रखूँगा। मेरा लक्ष्य है कि स्थायित्व केवल विकल्प नहीं, बल्कि आदत बने।
राज्य का गौरव
शौर्य सिंह की यह उपलब्धि न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का विषय है। उनका नवाचार यह सिद्ध करता है कि अपशिष्ट को भी चमत्कार में बदला जा सकता है, और युवा वैज्ञानिक भारत के सतत विकास के सशक्त वाहक बन रहे हैं।














